काश के कोई हमे भी मनाता
हम बेवजह रूठते वो हमें मनाता ||
न हर वक़्त मनमानी, अपनी ही करता,
कभी मेरे मन की बातें, समझ ही वो पाता ||
बेरुखी ही जख्म है,दवाई नहीं,
दो बातें सुनता, सुनाता, समझता ||
हम बेवजह रूठते वो हमें मनाता ||
सारी दुनिया के जुल्म सहेंगे हम अगर,
वो है दुनिया हमारी, ये महसूस करता,
उदासी मिटाने का कोई यन्त्र नहीं है,
दे वक्त जरा सा,खुशियों की हमें सैर कराता ||
हम बेवजह रूठते वो हमें मनाता ||
ये डरावने काले साये ग़मो के,
रौशनी हो, ले हाथो में हाथ, ये जान पाता
सुकून और आनंद की ख्वाइश सभी को,
प्रयत्न जरा सा, कोशिश जरा सी, काश कोई ये जान पाता ||
हम बेवजह रूठते वो हमें मनाता ||