प्रसवपूर्व पीड़ा
सुनहरी प्रखर भोर से पूर्व,
गहरी अँधेरी रात ,
कंपित सांस और
रक्तिम पीड़ा से परिपूर्ण जज्बात ।
एक कसक सी हर पल,
एक शुभारम्भ,एक अंत,
और यह दर्द —
जैसे है जीवन संगीत ।
कांपते स्पंदन में है विश्वास,
कि इस वेदना के गर्भ से,
उत्पन्न होगा प्रकाश ।
मेरे समीप भी होगा नवजीवन,
इरादे है नेक और भावना पावन ।
बस प्रभु यही मेरी याचना,
मिटे यह अवस्था,
पूर्ण हो आराधना ।
मधुर किलकारियों भरा जीवन
दे दो मुझे ये सौगात,
खत्म हो प्रसवपीड़ा, मिटे काली अंधियारी रात ।।
हो खत्म यह प्रचुर पीड़ा,
हो उदय नन्ही सी कोपल ,
हो विकसित, जो था गर्भित,
विकास को विचलित पलपल।
प्रीती कोलेकर २० अगस्त २०२५