Wednesday, August 20, 2025

प्रसवपूर्व पीड़ा

प्रसवपूर्व पीड़ा


सुनहरी प्रखर भोर से पूर्व, 

गहरी अँधेरी रात ,

कंपित सांस और

रक्तिम पीड़ा से परिपूर्ण जज्बात  ।


एक कसक सी हर पल, 

एक शुभारम्भ,एक अंत, 

और यह दर्द —

जैसे है जीवन संगीत ।


कांपते स्पंदन में है विश्वास,

कि इस वेदना के गर्भ से,

उत्पन्न होगा प्रकाश ।


मेरे समीप भी होगा नवजीवन, 

इरादे है नेक और भावना पावन ।


बस प्रभु यही मेरी याचना, 

मिटे यह अवस्था, 

पूर्ण हो आराधना ।



मधुर किलकारियों भरा जीवन

दे दो मुझे ये सौगात, 

खत्म हो प्रसवपीड़ा, मिटे काली अंधियारी रात ।।


हो खत्म यह प्रचुर पीड़ा,

हो उदय नन्ही सी कोपल ,

हो विकसित, जो था गर्भित,

विकास को विचलित पलपल।


प्रीती कोलेकर २० अगस्त २०२५