Thursday, November 30, 2017

ये माँ भी न...

ये माँ भी न, कितनी अजीब होती है।।
जानती है सब कुछ, पर मानती नही है।।

बचपन मे जब मैं, गिरता था, चोट मुझे लगती थी,
पूरा घर सर पे वो उठा लेती थी।।
मुझे ले ले घूमती थी दर बदर, अच्छे से अच्छा
डॉक्टर, home remedies  ढूँढती रहती थी।
अब मैं ठीक हु माँ, कहते रहता तंग मै,
पर वो फिर वही नियम से दवाई लगाया करती थी।।

न खाने का खयाल मुझे, न सोने की फिक्र,
हर वक़्त मुझे क्या करना है, बताया करती थी।।
ये न भाए मुझे, वो पसंद है, याद से सब कुछ,
मेरी हर जरूरत का खयाल वो रखा करती थी।।
हर resource को use कर वो अपने,
फिर भी "कुछ खास नही बना" ये सुना करती थी।।

मेरे एडमिशन में क्या स्कोर होना चाहिए सोचतें हुए,
फीस का हिसाब दिल मे लगाया करती थी।
होस्टल में मुझे क्या चाहिए कि लिस्ट बना,
अकेले में ये तेरा पेस्ट ये मेरा पेस्ट देख के
कलेजे को दिल से जुदा न कर पाती थी।।

ये माँ भी न, कितनी अजीब होती है।।
जानती है सब कुछ, पर मानती नही है।।

मैं सिर्फ कहता था, मुझे 8 बजे जाना है,
6 बजे से मुझे फोन पे उठाया करती थी।।
जैसे ही कहता था, टिकिट booked,
वो इंतज़ार में पलके बिछा देती थी।।
शहजादे की तरह बिताके कुछ दिन,
लौटते वक्त बैग में कुछ न कुछ भर देती थी।।

वक़्त बिता, नई नई जवानी आयी,
खून में जोशभरी रवानी आयी,
माँ मुझे अब भी बच्चा ही समझती है।।
जानती है सब कुछ पर मानती नही है।।

कहता हूं, आज buzy हु, कल कॉल करूँगा,
कल को सचमुच अगला कल समझ इंतेज़ार करती है।।
ये माँ भी न, कितनी अजीब होती है।।
जानती है सब कुछ, पर मानती नही है।।

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