Wednesday, January 26, 2011

My poems - मेरे साए..


मेरे साए...

खिला खिला सा चांद गगन में
खुशबू की लहरें चमन में
ये सब मेरी  साथी है
साथ  हमेशा होती  है
मुझ संग ये बतीयाती है

वो प्यारीसी कली गुलाब की
दोस्ती सदा रहेगी किताब की
मित्र मेरी ये दिया बाती है
साथ  हमेशा होती  है
मुझ संग ये बतीयाती है

दो प्यारे बाल हठीले
 उनके शोर से घर आँगन खिले
कभी कभी कट्टी भी होती है
ये जोडी साथ हमेशा होती  है
मुझ संग ये बतीयाती है

संग साथी सारे
फिर क्यों दूर लगे किनारे
किसकी कमी है महफील में
कैसे पहुंचू मंझिल मैं?
गुमसुम चुप चुप मेरे साए
मुझसंग क्यों न वो बतियाये?....

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